उत्तराखंड:-कुमाऊं की काशी बागेश्वर में कुमाऊँनी भाषा सम्मेलन की धूम,कुमाऊनी भाषा के संरक्षण के लिए जोरदार पहल,जाने माने लोकगायक नैन नाथ रावल ने गाया सुंदर गीत

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आर. पी. काण्डपाल

उत्तराखंड में कुमाऊं की काशी भगवान शंकर की बागनाथ नगरी बागेश्वर मे कुमाऊँनी भाषा सम्मेलन का भव्य आयोजन किया जा रहा है इस आयोजन में कुमाऊं के जाने माने और कुमाऊं की संस्कृति के लिए कार्य करने वाले साहित्यकार वा कवियों का जमावड़ा भी आयोजन स्थल में देखने को मिल रहा है बागेश्वर में पहली बार आयोजित हो रहे कुमाऊनी भाषा सम्मेलन में आज दूसरे दिन देवकी लघु वाटिका में प्रातः कुमाऊँनी पुस्तकालय कि स्थापना की गयी और साथ ही पौधारोपण कर पर्यावरण को संरक्षित करने का संदेश दिया गया।


कुमाऊँनी भाषा सम्मेलन के संयोजक किशन मलडा ने बताया कि ये पुस्तकालय शहर का पहला पुस्तकालय होगा जहां कुमाऊँनी भाषा कि पुस्तकें उपलब्ध होंगी।


देवकि लघु वाटिका मे कुमाऊँ के वरिष्ठ गायक नैननाथ रावल व घुघूती जागर टीम के कलाकारों द्वारा कुमाऊँनी गीतों कि अति सुंदर वा आकर्षक प्रस्तुति भी पेश की गयी दोपहर से एक बार फिर नरेंद्रा पैलेस मे पुनः कुमाऊँनी भाषा सम्मेलन प्रारंभ हुआ जिसमे वक्ताओं ने कुमाऊँनी भाषा को आठवी अनुसूची मे शामिल करने व कुमाऊँनी भाषा को विध्यालयी शिक्षा से जोडने पर गहन चर्चा की और अपने विचार भी साझा किए।


नैनीताल से आये हेमंत बिष्ट का कहना था कि कुमाऊँनी भाषा को बचाने के लिए निरंतर कार्य किये जा रहे हैं परन्तु सरकारों ने अभी तक कुमाऊँनी, गढवाली, जौनसारी जैसी भाषाओं के लिए कोई ठोस कदम नही उठाये हैं कुमाऊँनी भाषा को रोजगार से जोडना जरूर है जिससे इसका विस्तार तेजी होगा।
कुमाऊँनी मासिक पत्रिका पहरू के सम्पादक ललित तुलेरा ने अपने युवा साथियों के साथ मिलकर युवाओं को कुमाऊँनी भाषा से जोडने के लिए ‘उज्याव’ कुमाऊँनी भाषा लिजी युवा तराण नाम से एक पहल का शुभारंभ किया जिसके तरह 25 वर्ष से कम आयु के युवाओं को को इस अभियान से जोडा जायेगा व कुमाऊँनी भाषा को समाज मे और अधिक लोकप्रिय बनाया जायेगा
सम्मेलन मे अनेकों पुस्तकों के स्टॉल जिसमे जुगल किशोर पेटशाली, हयात सिंह रावत, डां शेर सिंह बिष्ट, बहादुर बोरा श्रीबंधू आदि लेखकों की पुस्तकें व जनशिक्षण संस्थान द्वारा एपण से बनी विभिन्न कलाकृतियां सामिल थी
कुमाऊँनी भाषा सम्मेलन मे ललित तुलेरा कि कैलियोगाफी (अक्षरांकन) लोगों को काफी पसंद आये । जिन्हें बांस कि कलम व अलग अलग रंगों से बनाया गया था।


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