उत्तराखंड:फायर सीजन के लिए तमाम तैयारियों के बाद भी आंखिर क्यों दहलते हैं जंगल?

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उत्तराखंड में गर्मी का सीजन आते ही जंगलों में आग लगने की समस्या हर सीजन में सामने आती है इस वनाग्नि से जंगल तो नष्ट होते ही हैं इसके अलावा भी कई जंगली जीव और अनमोल वन संपदा का भी नुकसान हो जाता है। वनाग्नि की यह जटिल समस्या से बागेश्वर के जंगल भी जूझ रहे है हर साल फायर सीजन में तमाम तैयारियों के बावजूद सैकड़ों हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में तो आते ही है इससे करोड़ों की वन संपदा के साथ साथ कई वन्यजीव भी प्रभावित होते हैं।

बागेश्वर ज़िले में फ़ायर सीज़न के दौरान अभी तक कुल जिले में वनाग्नि की रिकार्ड के अनुसार 67 घटनाएं सामने आई हैं जिसमे अब तक के आंकड़ों के अनुसार 91.50 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हो गए हैं। जंगलों में आग से लाखों की वन संपदा के नुकसान के साथ साथ कई वन्य प्राणियों को नुकसान हो गया है।
ग्रामिण व आराजक तत्वों के अलावा ज़िले की विभिन्न वन रैजों के जंगलों आग लगने के प्रमुख कारणों में बिजली की लाईनों में शॉर्ट सर्किट झूलते तारों के चलते जंगलों में आग लगने की घटना सामने आती रही हैं।
अब तक बागेश्वर वनरेंज के जिला मुख्यालय के समीप थापली, जौलकांडे, छतीना, बिलखेत,चंडिका पहाड़ी,गरुड़ ब्लॉक में बैजनाथ रेंज, धरमघर रेंज, कपकोट के पुंगर और कांडा के कई जंगल आग की चपेट में आये हैं।
जंगलों को आग लगाने वालों के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही है। बागेश्वर वन रेंज के जंगल जलाते पकड़े गए नाबालिगों को जुर्माने और सख्त चेतावनी के बाद छोड़ा गया है। इससे पूर्व में अलग अलग घटनाओं में 3 लोगों पर जुर्माने की कार्यवाही की गई वन विभाग भी लगातार ज़िले की 6 रैजों के जंगलों की मानीटरिंग ड्रोन कैमरों से कर रहा है। आग बुझाने के साथ लोगों को वनाग्नि सुरक्षा के लिए जागरूक भी किया जा रहा है। खुद ज़िले के वनाधिकारी DFO ज़िले की आम जनता से जंगलों को आग से बचाने की अपील कर रहे हैं।फिलहाल पूरे गर्मी के सीजन तक जंगलों में आग लगने का खतरा बरकरार है।और जंगलों को आग से बचाने के लिए ठोस नीति बनाए जाने की आवश्यकता भी है

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