सास बहू खेत लोक गाथा एक सास और बहू की

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उमेश सिंह मेहता

आज देव भूमि खबर आपको उत्तराखंड की प्रमुख लोक गाथाओं में से एक सास ब्वारी(बहू) खेत के बारे में जानकारी दे रहा है बागेश्वर मुख्यालय से तीन किलोमीटर की दूरी में स्थित बिलौना सेरा में ये ऐतिहासिक सास बहू खेत है इस खेत के मध्य में एक छपरी की आकर का टीला है जिसे लोक मान्यताओं के अनुसार सास बहू के कलेऊ की डलिया कहा जाता है।

कहानी ये है कि आषाड़ का महीना था धान व मडवे की गुड़ाई अपने चरम पे थी उस दौर में सभी के खेतों की गुड़ाई अंतिम चरण पर थी एक बुजुर्ग सास को पल पल चिंता सता रही थी कि सभी के खेतों की गुड़ाई हो गई है और उसका खेत छूट गया है यह सब उसके लिए अपने मान का सवाल था इस दौरान सास ने अपनी बहू के साथ एक योजना बनाई कि वो दोनों मिल कर चार दिन का काम मात्र एक दिन में करेंगे अब सुबह सुबह सास और बहू खेत मे पहुँच गये और दिन के खाने की छपरी खेत के मध्य में रख दी गई और गुडाई समाप्त होने के बाद खाना खाने की बात पक्की हो गई इस इसके बाद सुबह सुबह से ही कुटला लेकर खेत के एक कोने से सास तो दूसरे कोने से बहू असंभव से दिखने वाले कार्य को करना शुरू कर दिया इनमें से किसी को पता नहीं था कि आज का दिन कैसा होगा।

दोपहर की तेज धूप भूखी प्यासी सास और बहू द्वारा खेत की गुडाई जारी रखी गयी अब सांझ की बेला बेहद नजदीक थी और दोनों की गुडाई भी अंतिम चरण पर थी और वह वक्त आया जब गुडाई समाप्त कर दोनों ने जैसे ही खाने की डलिया तक हाथ बढ़ाया हाथ पहुंचते ही दोनों की जीवन लीला समाप्त हो गयी। इन्ही सास बहू की याद में बिलौना सेरा में स्थित इस खेत को आज भी सास ब्वारी खेत के नाम से जाना जाता है।

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