उत्तराखंड: (आस्था) रक्षाबंधन पर देवीधुरा माँ बाराही धाम में पारंपरिक बगवाल के साक्षी बने CM धामी समेत हजारों श्रद्धालु
चंपावत के देवीधुरा में रक्षा बंधन पर माँ बाराही धाम में खेले जाने वाली पारंपरिक बगवाल का आयोजन हुआ आज की बगवाल के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत हजारों की तादाद में श्रद्धालु साक्षी बने। सबसे पहले सीएम धामी ने मां बाराही के दर्शन कर पूजा अर्चना की ।
कुछ साल पहले की बात करें तो देवीधुरा के इस सुप्रसिद्ध पारंपरिक पत्थर से खेले जाने वाली यह बगवाल 4 ख़ामो के बीच आयोजित होती थी।इस बगवाल में कई लोग घायल भी हो जाते थे। जिसे 2013 में उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार फलों और फूलों से खेला जाने लगा। आज रक्षा बंधन के दिन अनादिकाल से खेली जा रही बगवाल को स्वयं मुख्यमंत्री ने देखा। 4 ख़ामो 7 तोको के बीच खेली गई।
7.30 मिनट तक चली इस बगवाल को शंखनाद से शुरू किया जाता है, माना जाता है कि एक नर जितना खून जब माँ के इस प्रांगण में चढ़ता है तो बगवाल रुक जाती है। इस बगवाल के दौरान इसमे हिस्सा लेने वाले रणबाँकुरे अपने को लगी चोट माँ बाराही का आशीर्वाद मानते है। आज खेली गई इस बगवाल में तकरीबन 157 रणबाकुरों समेत दर्शक घायल हुए। मुख्यमंत्री ने इस बगवाल का हिस्सा बनने पर खुद को सौभाग्यशाली बताया और साथ ही जल्द इन धार्मिक स्थलों को सरकार की मदद से इनके विस्तारण की बात कही।
देवीधुरा का ऐतिहासिक बग्वाल मेला असाड़ी कौतिक के नाम से भी प्रसिद्ध है। हर साल रक्षा बंधन के मौके पर बग्वाल का आयोजन किया जाता है । प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पौराणिक काल में चार खामों के लोगों द्बारा अपनी आराध्या मां बाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी। मां बाराही को प्रसन्न करने के लिए चारों खामों के लोगों में से हर साल एक नर बलि दी जाती थी।
बताया जाता है कि एक साल चमियाल खाम की एक वृद्धा परिवार की नर बलि की बारी थी। परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे। महिला ने अपने पौत्र की जान बचाने के लिए मां बाराही की स्तुति की। मां बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए और कहा जाता है कि देवी ने वृद्धा को मंदिर परिसर में चार खामों के बीच बग्वाल खेलने के निर्देश दिए। तब से बग्वाल की प्रथा लगातार चलती आ रही है धीरे धीरे इस पर्व ने एक बड़े मेले का स्वरूप भी ले लिया है।