बागेश्वर(कपकोट): दिव्यांग बहनों ने 41 साल बाद घर के बाहर रखे कदम, रेडक्रॉस सदस्यों ने घुमाया उत्तरायणी मेला

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बागेश्वर : सुदूरवर्ती दुर्गम गांव मिखिलाखलपट्टा की जुड़वा दिव्यांग बहनों ने 41 वर्ष में पहली बार घर से बाहर कदम रखा। कपकोट में आयोजित उत्तरायणी मेले का दिनभर आनंद उठाया। बाजार देखा तथा वह इतनी खुश दिखीं, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। यह सब कुछ हो सका रेडक्रास सोसायटी के सदस्य महेश गढ़िया की पहल से।

कपकोट से लगभग 45 किमी दूर मिकिलाखलपट्टा गांव है। गांव की बेटियां रेखा तथा गोविंदी चल-फिर तथा बोल-सुन नहीं सकतीं हैं। कमर से नीचे का भाग बचपन से ही काम नहीं करता है। गांव की महिलाएं तथा अन्य उत्तरायणी मेले में जाने को तैयार हो रहीं थीं। दिव्यांग बहनों का मन भी हिलोरे भर रहा था। लेकिन उनके लिए घर से बाहर कदम रखना सपना था। जिसे साकार होना भी संभव नहीं था। गांव के अर्जुन खल्पिटया ने जुड़वा बहनों के मन की बात सुनी। उन्होंने कपकोट निवासी महेश गढ़िया से संपर्क किया। फिर क्या था, महेश ने समाज कल्याण विभाग से दो व्हील चेयर की व्यवस्था की। अपनी कार में चेयर रखीं और गांव का रुख किया। 45 किमी दूर गांव पहुंचे। सड़क से 500 मीटर ऊपर बहनों के घर पहुंचे। उन्हें मेले के लिए तैयार करवाया। गांव की महिलाओं की मदद से सड़क तक पहुंचाया। वहां से अपनी कार से भराड़ी पहुंचे। बहनों को अलग-अलग व्हील चेयर मे बिठाया। मेला दिखाया तथा बाजार घुमाया। गढ़िया के काम की चहुंओर सराहना हो रही है।भारतीय रेडक्रास के जिला सचिव आलोक पांडे ने कहा कि गढ़िया ने समाज को प्रेरित करने का काम किया है। बहनों ने 41 वर्ष की उम्र तक बाहर की दुनियां नहीं देखी थी। उनके सिर से पिता स्व. शोबन सिंह का साया भी उठ गया था। माता नंदुली देवी उन्हें पाल रहीं हैं। हालांकि समाज कल्याण विभाग 2021 नवंबर से बहनों को दिव्यांग पेंशन दे रहा है। जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र की मोहनी कोरंगा का भी विशेष योगदान रहा। उत्तरायणी मेले का भ्रमण करवाना बात छोटी हो सकती है, लेकिन उन बेटियों के चेहरे की मुस्कान और खुशियां बहुत बड़ी हैं।

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